वेदिक ज्योतिष में राहु का विशेष स्थान है। इसे एक छाया ग्रह माना जाता है क्योंकि इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली और गहरे होते हैं। राहु को ऐसे ग्रह के रूप में जाना जाता है जो भ्रम, अस्थिरता और अनिश्चितता का कारक है। यह किसी व्यक्ति के जीवन में मानसिक भ्रम, लालच, अप्रत्याशित घटनाओं, और भौतिक सुखों की तीव्र आकांक्षा को प्रभावित करता है।
पुराणों में राहु का वर्णन समुद्र मंथन की कथा से मिलता है। देवताओं और असुरों के बीच अमृत का बंटवारा हो रहा था, तब राहु, जो कि एक असुर था, ने देवताओं के बीच छलपूर्वक बैठकर अमृत ग्रहण कर लिया। सूर्य और चंद्रमा ने यह देख लिया और भगवान विष्णु को सूचित किया। भगवान विष्णु ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर और धड़ अलग कर दिया। किंतु अमृत पीने की वजह से राहु अमर हो गया। उसके सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया।
राहु कुंडली के 12 घरों में किसी भी ग्रह के साथ संबंध बना सकता है और उस ग्रह के प्रभाव को बदल देता है। इसके प्रभावों का आधार ग्रह की स्थिति और ग्रहों की दृष्टियों पर निर्भर करता है। राहु के प्रमुख परिणामों में भौतिक सुख, प्रसिद्धि, विदेश यात्रा, और आध्यात्मिक उन्नति शामिल हो सकते हैं, लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव भ्रम, अत्यधिक इच्छाएं, मानसिक तनाव, और अप्रत्याशित संकटों के रूप में भी सामने आता है।
राहु का प्रभाव अत्यधिक रहस्यमयी और अप्रत्याशित हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही यह व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाने की शक्ति भी रखता है। कुंडली में इसकी स्थिति और इसके साथ जुड़े ग्रहों के आधार पर राहु जीवन में अद्भुत परिणाम दे सकता है।
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