पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का विशेष समय होता है। यह पर्व भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म करते हैं। पितृ पक्ष को हमारे पितरों की आत्मा को संतुष्ट करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का पवित्र समय माना जाता है।
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है क्योंकि इसे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का समय माना जाता है। इस समय को हमारे पूर्वज पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और पिंडदान की अपेक्षा करते हैं। माना जाता है कि पितरों की आत्मा की तृप्ति से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। यदि इस समय पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध कर्म न किए जाएं, तो पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है, जिससे परिवार में कष्ट, असफलता और स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
श्राद्ध कर्म: पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तिथि अनुसार श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष भोजन तैयार किया जाता है और इसे ब्राह्मणों को अर्पित किया जाता है।
तर्पण: तर्पण का अर्थ है जल अर्पण करना। यह कर्म पितरों की आत्मा को जल अर्पित कर उन्हें तृप्त करने के लिए किया जाता है। इसे गंगा, यमुना, या किसी भी पवित्र नदी में किया जा सकता है।
पिंडदान: पिंडदान को पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कर्म माना जाता है। यह गया, हरिद्वार, वाराणसी आदि तीर्थ स्थानों पर किया जाता है, जहाँ चावल, तिल और अन्य सामग्री से पिंड बनाए जाते हैं और पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
भोजन दान: पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों, गरीबों, और भूखों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इसे 'अन्नदान' कहा जाता है, जो पितरों की आत्मा को संतोष प्रदान करता है।
क्या करें:
क्या न करें:
पितृ पक्ष से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा महाभारत के समय की है। कहा जाता है कि जब कर्ण की मृत्यु हुई तो वह स्वर्ग में गया, जहाँ उसे खाने के लिए केवल सोना और गहने मिले। भूख से परेशान होकर कर्ण ने यमराज से इसका कारण पूछा। यमराज ने बताया कि जीवनभर उसने दान दिया लेकिन कभी अपने पितरों को तर्पण और पिंडदान नहीं किया। कर्ण ने यमराज से माफी मांगकर पितृ पक्ष के दौरान पृथ्वी पर जाकर श्राद्ध कर्म करने की अनुमति मांगी। इसी कारण पितृ पक्ष को पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति का समय माना जाता है।
पितृ पक्ष हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का समय है। इस दौरान किए गए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म न केवल हमारे पितरों की आत्मा को संतुष्टि प्रदान करते हैं, बल्कि हमें भी उनके आशीर्वाद का लाभ मिलता है। इसलिए, इस पवित्र समय का महत्व समझकर श्रद्धा और पूर्ण निष्ठा के साथ पितृ पक्ष के कर्म अवश्य करें और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति करें।
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