नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का यह रूप अत्यंत भयानक माना जाता है, परंतु वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी और शुभकारी होती हैं। इस रूप में मां दुर्गा भक्तों के सभी पापों, बाधाओं, दुखों और बुराइयों का नाश करती हैं और उन्हें मोक्ष प्रदान करती हैं। उनके इस रूप का दर्शन भय और अज्ञानता से मुक्ति दिलाता है।
मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक और रौद्र रूप में है। उनकी त्वचा काले रंग की है, और उनके बाल बिखरे हुए हैं। उनके तीन नेत्र हैं जो सृष्टि के तीनों कालों—भूत, वर्तमान और भविष्य—का प्रतीक हैं। उनके श्वास से आग की ज्वालाएं निकलती हैं, जो उनकी शक्ति का द्योतक है। मां कालरात्रि के चार हाथ होते हैं। उनके एक हाथ में खड्ग और दूसरे में लोहे का कांटा होता है। बाकी के दो हाथ अभय और वर मुद्रा में होते हैं, जो भक्तों को निर्भयता और वरदान प्रदान करने का संकेत है।
मां कालरात्रि एक गधे पर सवार रहती हैं, जो उनके विनम्रता और साधारणता का प्रतीक है। उनका यह रूप इस बात का प्रतीक है कि बाहरी भौतिक दुनिया में भय चाहे जितना भी बड़ा हो, मां की शक्ति से सब कुछ नियंत्रित किया जा सकता है।
मां कालरात्रि का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें और चुनौतियाँ क्यों न आएं, उनसे डरने की बजाय उनका सामना साहस और दृढ़ संकल्प के साथ करना चाहिए। मां कालरात्रि के भक्त उनके रूप का ध्यान करते हैं ताकि वे अपने जीवन के भय, अज्ञानता, और दु:खों से मुक्त हो सकें।
मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है, क्योंकि वे शुभ फल देने वाली देवी हैं। उनके दर्शन से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं। जो व्यक्ति मां कालरात्रि की भक्ति से पूजन करता है, उसे अचानक आने वाली आपदाओं से सुरक्षा मिलती है। इसके साथ ही, मां कालरात्रि हमें जीवन के नकारात्मक पहलुओं को स्वीकार करने और उनके समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने की प्रेरणा देती हैं।
मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन, सप्तमी को विशेष रूप से की जाती है। इस दिन साधक अपने मन को सहस्रार चक्र में केंद्रित करते हैं। सहस्रार चक्र को शक्ति का मुख्य केंद्र माना जाता है, और इसे जागृत करने से व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि इस प्रकार है:
मां कालरात्रि को काल और मृत्यु की देवी माना जाता है। उनके नाम में "काल" शब्द का अर्थ है समय और "रात्रि" का अर्थ है अज्ञानता या अंधकार। वे इस अंधकार को समाप्त करके व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं। उन्हें तमोगुण की देवी भी कहा जाता है, जो संसार के तमस (अंधकार) और बुराइयों का नाश करती हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब मां कालरात्रि ने असुरों का विनाश कर देवताओं को विजय दिलाई थी। इसी कारण मां कालरात्रि को बुरी शक्तियों का विनाश करने वाली देवी माना जाता है। मां का यह रूप हमें जीवन की कठिनाइयों और विपत्तियों से न डरने की प्रेरणा देता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से मां कालरात्रि का पूजन साधक को अज्ञानता और मोह से मुक्त करता है। जब साधक मां की भक्ति में पूरी तरह लीन हो जाता है, तब उसे संसार के भयों और दुखों से मुक्ति मिलती है। सहस्रार चक्र का जागरण व्यक्ति को उच्चतम चेतना की अवस्था में ले जाता है, जहां उसे ब्रह्मांडीय ज्ञान की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, जो साधक को भक्ति, ज्ञान और शक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है। सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा इसलिए की जाती है ताकि साधक अपने भीतर के अंधकार और डर को नष्ट कर सके और जीवन में आत्मबल और साहस को प्राप्त कर सके। मां कालरात्रि की कृपा से व्यक्ति जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो जाता है और उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
मां कालरात्रि न केवल भयंकर स्वरूप की देवी हैं, बल्कि वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और शुभ फल देने वाली हैं। उनके आशीर्वाद से भक्त जीवन के सभी संकटों और कष्टों से मुक्त होकर आनंद और शांति प्राप्त करते हैं। मां कालरात्रि की उपासना हमें यह सिखाती है कि संसार में कितनी भी नकारात्मकता क्यों न हो, उसे मात देकर ज्ञान और शक्ति की ओर बढ़ा जा सकता है। मां कालरात्रि की कृपा से हम अपने जीवन के सभी कष्टों और अज्ञानता का नाश कर सकते हैं और आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
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