चंद्रघंटा माँ दुर्गा के नौ रूपों में से तीसरा स्वरूप हैं। माँ चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। उनका नाम उनके मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने के कारण पड़ा है, जो घंटे के आकार का प्रतीत होता है। उनके इस रूप में शक्ति, साहस और शांति का समन्वय है, और वे अपने भक्तों को साहस और विजय का आशीर्वाद देती हैं।
पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप विशेष रूप से किया जाता है:
ध्यान मंत्र:
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता ||
मूल मंत्र:
ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः |
पौराणिक कथा के अनुसार, माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर जैसे शक्तिशाली राक्षस का विनाश किया। जब देवताओं और मानवों पर अत्याचार बढ़ने लगे, तब माँ दुर्गा ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया और देवताओं को बचाने के लिए युद्धभूमि में उतरीं। इस स्वरूप में माँ ने घंटा धारण किया और उससे उत्पन्न आवाज से राक्षसों का अंत किया। इस प्रकार, माँ चंद्रघंटा ने संसार में शांति और संतुलन की स्थापना की।
माँ चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों में साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है। उनके उपासक जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से मन की शांति, मानसिक और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
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