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मां चंद्रघंटा: पूजन विधि और मंत्र

मां चंद्रघंटा: पूजन विधि और मंत्र

चंद्रघंटा माँ दुर्गा के नौ रूपों में से तीसरा स्वरूप हैं। माँ चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। उनका नाम उनके मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने के कारण पड़ा है, जो घंटे के आकार का प्रतीत होता है। उनके इस रूप में शक्ति, साहस और शांति का समन्वय है, और वे अपने भक्तों को साहस और विजय का आशीर्वाद देती हैं।

चंद्रघंटा पूजा विधि

  1. पूजा स्थल की तैयारी: सबसे पहले घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करें और माँ चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  2. संकल्प: माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से पूर्व संकल्प लें। जल, फूल, अक्षत और चंदन को हाथ में लेकर संकल्प करें कि आप पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से माँ की पूजा करेंगे।
  3. कलश स्थापना: माँ की प्रतिमा के समीप एक जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश पर मौली बांधकर उसमें आम के पत्ते रखें और ऊपर नारियल रखें।
  4. माँ की स्तुति: माँ को पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद उनका ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप करें।
  5. आरती: पूजा के अंत में माँ चंद्रघंटा की आरती करें। शंख और घंटी बजाते हुए आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

चंद्रघंटा मंत्र

पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप विशेष रूप से किया जाता है:

ध्यान मंत्र:
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता ||

मूल मंत्र:
ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः |

चंद्रघंटा कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर जैसे शक्तिशाली राक्षस का विनाश किया। जब देवताओं और मानवों पर अत्याचार बढ़ने लगे, तब माँ दुर्गा ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया और देवताओं को बचाने के लिए युद्धभूमि में उतरीं। इस स्वरूप में माँ ने घंटा धारण किया और उससे उत्पन्न आवाज से राक्षसों का अंत किया। इस प्रकार, माँ चंद्रघंटा ने संसार में शांति और संतुलन की स्थापना की।

माँ चंद्रघंटा की कृपा

माँ चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों में साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है। उनके उपासक जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से मन की शांति, मानसिक और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।


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