परिचय: मां ब्रह्मचारिणी, नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप के रूप में पूजित होती हैं। यह रूप तपस्या और आत्म-शक्ति का प्रतीक है। उनके भक्त उन्हें असीम धैर्य और समर्पण से पूजा करते हैं। उनके इस स्वरूप में, वह अपने दोनों हाथों में रुद्राक्ष माला और कमंडल धारण करती हैं। उनकी साधना के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा: मां ब्रह्मचारिणी को तपस्या की देवी माना जाता है। वह पर्वतराज हिमालय और मैना की पुत्री हैं। अपने पूर्व जन्म में उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के दौरान उन्होंने वर्षों तक केवल बेल पत्र और फलाहार से जीवन यापन किया। इस तपस्या के प्रभाव से ही उन्हें भगवान शिव का वरदान प्राप्त हुआ। मां का यह रूप सभी को संयम, धैर्य, और कठिन तपस्या के महत्व को समझाता है।
पूजन विधि:
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
ध्यान मंत्र:
दधाना करपद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना का महत्व: मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से भक्तों को संयम, धैर्य, और तपस्या की शक्ति प्राप्त होती है। उनकी पूजा से मनुष्य को कठिन परिस्थितियों में धैर्यवान और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिलती है। जो व्यक्ति मां की विधि-विधान से पूजा करता है, उसे अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। यह पूजा विशेष रूप से विद्यार्थियों और तपस्वियों के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
0 टिप्पणियाँ मां ब्रह्मचारिणी: पूजन विधि और मंत्र