आपका पसंदीदा ज्योतिष केंद्र

पत्रिका जोन पर पाएं ज्योतिष, कुंडली मिलान और भविष्यवाणियों के लेख

अभी शुरू करें

करण के प्रकार और उनके अनुसार कार्य

करण के प्रकार और उनके अनुसार कार्य

हिंदू ज्योतिष में 'करण' का विशेष महत्व है, जो तिथि के आधे भाग को दर्शाता है। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से 4 स्थिर और 7 चर करण होते हैं। करणों का उपयोग शुभ और अशुभ कार्यों के समय को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक करण का अपना एक विशेष महत्व होता है और यह जीवन के विभिन्न कार्यों पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालता है।

करण को समझकर सही समय पर कार्य करने से जीवन में सफलता और शांति प्राप्त की जा सकती है। आइए जानते हैं करण के प्रकार और उनके अनुसार कौन से कार्य कब किए जाने चाहिए।

करण के प्रकार

1. चर करण (7 प्रकार)

चर करण का प्रभाव बदलता रहता है और यह दिन के अलग-अलग समय में शुभ या अशुभ हो सकता है। ये करण अधिकतर तिथियों के दूसरे आधे हिस्से में होते हैं।

  1. बव

    • कार्य: शिक्षा, अध्यात्मिक कार्य, दान
    • महत्व: बव करण में किसी भी नए कार्य की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
  2. बालव

    • कार्य: सौंदर्य से जुड़े कार्य, मित्रता बढ़ाना
    • महत्व: इस करण में शिक्षा और व्यापार में वृद्धि के लिए कार्य करना शुभ होता है।
  3. कौलव

    • कार्य: सामाजिक कार्य, दान, खरीदारी
    • महत्व: कौलव करण सामाजिक और आर्थिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
  4. तैतिल

    • कार्य: व्यापारिक और आर्थिक कार्य
    • महत्व: तैतिल करण में व्यवसाय संबंधी कार्य करना लाभदायक होता है।
  5. गर

    • कार्य: भवन निर्माण, खेती-बाड़ी
    • महत्व: यह करण नए प्रोजेक्ट्स, भवन निर्माण और खेती से संबंधित कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।
  6. वणिज

    • कार्य: व्यापार, सौदेबाजी, वित्तीय निवेश
    • महत्व: इस करण में व्यापारिक कार्य करना शुभ माना जाता है।
  7. विष्टि (भद्रा)

    • कार्य: कोई भी शुभ कार्य न करें
    • महत्व: विश्टि करण अशुभ माना जाता है और इस समय कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने से बचना चाहिए।

2. स्थिर करण (4 प्रकार)

स्थिर करण स्थिर होते हैं और यह अमावस्या और पूर्णिमा के समय में पाए जाते हैं। इन करणों का प्रभाव निश्चित होता है।

  1. शकुनि

    • कार्य: शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले कार्य
    • महत्व: शकुनि करण में शत्रुओं से निपटने या विरोधियों पर विजय प्राप्त करने के लिए कार्य करना शुभ होता है।
  2. चतुष्पद

    • कार्य: पशु पालन, चिकित्सा
    • महत्व: यह करण पशुओं से जुड़े कार्यों और चिकित्सा संबंधित कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
  3. नाग

    • कार्य: गुप्त कार्य, योग और साधना
    • महत्व: नाग करण गुप्त योजनाओं और आध्यात्मिक कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।
  4. किंस्तुघ्न

    • कार्य: यात्रा, व्यापार
    • महत्व: किंस्तुघ्न करण यात्रा और व्यापार संबंधी कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

करण के अनुसार कार्य करने के नियम

  1. शुभ करण में करें कार्य: बव, बालव, गर, वणिज जैसे करणों में नए कार्यों की शुरुआत, निवेश और व्यापार करना शुभ माना जाता है।
  2. अशुभ करण से बचें: विश्टि (भद्रा) करण में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।
  3. ग्रह और तिथि का ध्यान रखें: करण के साथ-साथ ग्रहों और तिथियों की स्थिति का भी ध्यान रखें ताकि कार्य में सफलता प्राप्त हो सके।
  4. पंचांग का अनुसरण करें: पंचांग की मदद से करण के समय का सही ज्ञान प्राप्त करें और उसी के अनुसार कार्य योजना बनाएं।

करण के अनुसार कार्यों का महत्व

करण के अनुसार कार्य करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और कार्यों में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। पंचांग में दिए गए करण के समय का पालन कर आप अपने दैनिक कार्यों और महत्वपूर्ण योजनाओं को सफल बना सकते हैं।

निष्कर्ष

करण के आधार पर कार्यों का निर्णय लेना एक प्राचीन परंपरा है, जो हिंदू ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। करण के अनुसार कार्य करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। पंचांग की सहायता से करण की स्थिति का सही ज्ञान लेकर, आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और कठिनाइयों से बच सकते हैं।


साझा करे

अपनी टिप्पणी लिखे

1 टिप्पणियाँ करण के प्रकार और उनके अनुसार कार्य

  • आचार्य पंडित सुरेंदर तिवारी
    Tue Oct 01 2024

    करण को विस्तृत में बताने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद